Admission open for the session 2024-25
Message by Manager/Secretary

रामलली स्मारक विकास संस्थान की स्थापना उत्तर प्रदेश की वनस्थली नजाकत और नफासत की जन्मभूमि तहजीब ओ तरन्नुम का शहर जनपद लखनऊ में वर्ष 2007 में हुआ था जो कि वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश की राजधानी है और आधुनिक काल की बनी अनेक भव्य इमारतें ऐतिहासिक धरोहर लखनऊ के महत्व को और बढ़ा दिया है लखनऊ गोमती नदी के दोनों तटों पर अपनी पूरी आन बान और शान के साथ विस्तृत है।

संस्थान की स्थापना समेकित शिक्षा समावेशी शिक्षा के माध्यम से निशक्त जनों के पुनर्वास एवं सशक्तिकरण तथा उन्हें राष्ट्र के शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने के मूल उद्देश्य से की गई जहां पर निशक्त छात्र-छात्राओं एवं सामान्य छात्र छात्राओं के एक साथ पठन-पाठन की व्यवस्था है समग्र परिसर निशक्त जनों के अनुरूप बाधारहित स्थापना अवस्थापना सुविधाओं से सुसज्जित है हमारा ध्येय छात्र-छात्राओं में अंतर्निहित बौद्धिक समर्थतायो का विकास करना ही नहीं है बल्कि उच्च कोटि के जीवन मूल्य एवं सदाचार का विकास कर उन्हें स्वावलंबी बनाना भी है।

संस्थान द्वारा अपने ध्येय वाक्य में कहां गया है- हम पहुंचे वहाँ, पहुंचे न कोई जहाँ का अनुसरण करते हुए छात्र जहाँ ,हम वहाँ को चरितार्थ किया जा रहा है राष्ट्र के सर्वांग्रीण विकास और शिक्षा मेंअन्नायोन्याश्रित संबंध है देश के समस्त नागरिकों को समपार गुणवत्ता की शिक्षा प्रदान करना न केवल एक संवैधानिक दायित्व है वरन एक मानवीय आवश्यकता और सामाजिक कर्तव्य भी है विशिष्ट आवश्यकता वाले बालक एवं बालिकाओं की उचित शिक्षा व प्रशिक्षण की व्यवस्था सुनिश्चित करके उन्हें समाज की मुख्य धारा में लाना भी अत्यंत आवश्यक है। रामलली स्मारक विकास संस्थान की स्थापना का उद्देश्य शिक्षा के माध्यम से राज्य के सर्वांग्रीण विकास में रचनात्मक भूमिका का निर्वहन है। शिक्षा पद्धति के माध्यम से अधिसंख्य जन समुदाय में शिक्षा, शोध ,प्रशिक्षण और विस्तार ही द्वारा मानव संसाधनों की अभिवृद्धि इसका लक्ष्य है।

वर्तमान समय में रामलली स्मारक विकास संस्थान का मुख्यालय 632 / 61 सनातन नगर (कमता) चिनहट लखनऊ पिन कोड- 226028 में स्थित है। जहां पर कुशल, योग्य ,अनुभवी एवं प्रशिक्षित अध्यापकों द्वारा सामान्य / विशिष्ट आवश्यकता वाले बालक एवं बालिकाओं को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा / प्रशिक्षण दिया जा रहा है। शिक्षा जगत में कहा गया है -

सर्व द्रवेषु सर्व द्रव्येषु विद्यैव
द्रव्यम् आहुरन उत्तमम्,
अहार्य त्वादनर्घ्य
त्वादक्षयत्वाच्च सर्वदा।।

अर्थात जितने कुछ धन रत्न इस जगत में है | उन सब धन रत्नों से विद्या धन सब संपत्तियों में श्रेष्ठ है, इस धन को न कोई छीन सकता है ना कोई इसको मोल ले सकता है न ही इसका कभी क्षय हो सकता है। इस कारण विद्या धन ही संसार में निश्चय अनमोल रत्न है। और इसी अनमोल रत्न को ग्रहण करने के कारण मानव योनि सभी जीवो में श्रेष्ठ है। परंतु भला हो हमारे संविधान निर्माताओं का एवं एक सार्थक प्रयास हमारे सरकार का जो सभी छात्र/ छात्राओं को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए कटिबद्ध एवं वचनबद्ध है। इतिहास गवाह है कि प्राचीन काल से हमारे देश के कवियों ने भी अपने ज्ञान व कौशल की पताका पूरे संसार में फैलाया है। हमारे देश में प्राचीन काल से ही न केवल मानव मात्र के कल्याण की चिंता व्यक्त की गई है। बल्कि प्रकृति में वास करने वाले सभी सजीव एवं निर्जीव की भी चिंता की गई है। इसलिए ईश्वर से प्रार्थना की गई है कि विश्व को असत्य से सत्य की ओर, और अंधकार से प्रकाश की ओर ,मृत्यु से अमृतत्व की ओर, अग्रसर होने की सदैव प्रेरणा मिले इस प्रकार की प्रेरणा का मुख्य स्रोत शिक्षा ही है।

असतो मा सदगमय ॥
तमसो मा ज्योतिर्गमय ॥
मृत्योर्मामृतम् गमय ॥

एक बाधारहित एवं अनुशासन स्फ़ुर्त वातावरण मैं उत्कृष्ट शिक्षा के प्रचार एवं प्रसार कार्यो के लिए पूर्णतया समर्पित रामलली स्मारक विकास संस्थान में मैं आप सभी का स्नेहिल स्वागत करते हुए आपके अभ्युदय की मंगल कामना करता हूं |मुझे आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले सामान्य /विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों की शिक्षा के को मुख्य धारा में लाकर शिक्षित आत्मनिर्भर व आत्मविश्वास से ओत-प्रोत बनाने का प्रयास निरंतर किया जाता रहेगा| जो उनके जीवन के एकांकी क्षणों में आनंद तथा ज्ञान का स्रोत बनी रहेगी और युग- युगांतर तक उनकी राहों पर दीप जलती रहेगी।

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